चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया

चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया|
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया|

डूबे हुए जहाज़ पे क्या तब्सरा करें,

ये हादसा तो सोच की गहराई ले गया|

हालाँकि बेज़ुबान था लेकिन अजीब था,

जो शख़्स मुझ से छीन के गोयाई ले गया|

इस वक़्त तो मैं घर से निकलने न पाऊँगा,

बस एक कमीज़ थी जो मेरा भाई ले गया|

झूठे क़सीदे लिखे गये उस की शान में,

जो मोतीयों से छीन के सच्चाई ले गया|

यादों की एक भीड़ मेरे साथ छोड़ कर,

क्या जाने वो कहाँ मेरी तन्हाई ले गया|

अब असद तुम्हारे लिये कुछ नहीं रहा,

गलियों के सारे संग तो सौदाई ले गया|

अब तो ख़ुद अपनी साँसें भी लगती हैं बोझ सी,

उमरों का देव सारी तवनाई ले गया|

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