अपने होने का हम इस तरह पता देते थे

अपने होने का हम इस तरह पता देते थे
खाक मुट्ठी में उठाते थे, उड़ा देते थे

बेसमर जान के हम काट चुके हैं जिनको

याद आते हैं के बेचारे हवा देते थे

उसकी महफ़िल में वही सच था वो जो कुछ भी कहे

हम भी गूंगों की तरह हाथ उठा देते थे

अब मेरे हाल पे शर्मिंदा हुये हैं वो बुजुर्ग

जो मुझे फूलने-फलने की दुआ देते थे

अब से पहले के जो क़ातिल थे बहुत अच्छे थे

कत्ल से पहले वो पानी तो पिला देते थे

वो हमें कोसता रहता था जमाने भर में

और हम अपना कोई शेर सुना देते थे

घर की तामीर में हम बरसों रहे हैं पागल

रोज दीवार उठाते थे, गिरा देते थे

हम भी अब झूठ की पेशानी को बोसा देंगे

तुम भी सच बोलने वालों के सज़ा देते थे

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