आँसुओं की जहाँ पायमाली रही !!!

आँसुओं की जहाँ पायमाली रही
ऐसी बस्ती चराग़ों से ख़ाली रही

दुश्मनों की तरह उस से लड़ते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही

जब कभी भी तुम्हारा ख़याल आ गया
फिर कई रोज़ तक बेख़याली रही

लब तरसते रहे इक हँसी के लिये
मेरी कश्ती मुसाफ़िर से ख़ाली रही

चाँद तारे सभी हम-सफ़र थे मगर
ज़िन्दगी रात थी रात काली रही

मेरे सीने पे ख़ुशबू ने सर रख दिया
मेरी बाँहों में फूलों की डाली रही

0 comments:

Follow us on Twitter! Follow us on Twitter!
Replace this text with your message